Table of Contents
Heading Title
महाराणा प्रताप जिनका वास्तविक नाम प्रताप सिंह था महाराणा प्रताप वर्तमान युवाओं का प्रेरणास्त्रोत और महान योद्धा के रूप में हमेशा याद किये जाते हैे। महाराणा प्रताप के चरित्र की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता थी, उनका आत्मसम्मान जिसके लिए उन्होंने जीवन भर संघर्ष किया और इतिहास में अपनी अमिट छाप छोडी। आज हम ऐसे ही महान योद्धा की बात करेंगे जिसने अपने जीवन में अपने मूल्यों जैसे दृण संकल्प, आत्मसम्मान, बीरता, मातृभूमि से प्रेम, त्याग पराक्रम आदि को सर्वोपति रखा तथा इन्हें प्राप्त करने के लिए मुगल बादशाह अकबर की अधिनता स्वीकार नहीं की तथा इसके लिए जीवनपर्यंत संघर्ष का रास्ता चुना।
व्यक्तिगत विशेषताएं
महाराणा प्रताप राजस्थान के मेवाड रियासत के सिसोदिया वंश के राजा थे इनका जन्म 9 मई 1540 को कुंभलगढ के किले में हुआ था। इनके पूर्ववर्ती तथा इनके पिता राजा उदय सिंह द्वितीय जी थे तथा इनकी माता का नाम जयवंता बाई सोनगरा था।
नाम-प्रताप सिंह
बचपन का नाम- कीका, भील समुदाय के लोग उन्हें प्यार से कीका कहकर संबोधित करते थे। क्योंकि भील समुदाय के लोग अपने पुत्र को कीका कहते हैं।
जन्म– 9 मई 1540
स्थान- कुंभलगढ किला
पिता– उदय सिंह द्वितीय
माता– जयवंता बाइ सोनगरा
राज्याभिषेक– 28फरवरी 1572
शासनाविधि-28फरवरी1572 से 19 जनवरी 1597 तक
कद– 7 फुट
जीवनसाथी– महाराणा प्रताप की 14 रानियां थी। प्रिय पत्नि आजा वैसा थी।
पुत्र और पुत्रियां– 17बेटे और 5 बेटियां
अग्रवर्ती शासक– राणा अमर सिंह
हथियार– 81 किलों का भाला और 72 किलो की दो तलवारें एक अपने लिए दूसरी निहत्ते दुश्मन के लिए क्योंकि महाराणा प्रताप कभी किसी निहत्ते पर वार नहीं करते थे।
प्रिय घोडा– चेतक हवा की तरह दौडने वाला वीर निडर साहसी और वफादार नीले रंग का घोडा। हल्दिघाटी के युद्ध के बाद घायल महाराणा प्रताप को युद्ध स्थल से सफलता पूर्वक निकालने में 26 फिट का नाला पार किया। युद्ध में लगी चोटों के कारण चेतक की मृत्यु हुई। चेतक की समाधी राजसमंद जिले में है।
रण-बीच चौकडी भर-भरकर चेतक बन गया ननराला था।
राणा प्रताप के घोड से पड गया हवा को पाला था।
महाराणा प्रताप का योगदान
स्वतंत्रता की रक्षा:
महाराणा प्रताप ने अपने नैतिक मूल्यों को सर्वोपरि रखते हुए अपनी स्वतंत्रता की रक्षा की। कहा जाता है कि अकबर ने उन्हें मेंवाड के बदले आधा हिन्दुस्तान देने की पेशकश की लेकिन महाराणा प्रताप ने इसे सहर्ष ठुकरा दिया और स्वतंत्रता को चुना। उन्होंने अपने परिवार सहित अपना जीवन पहाडों में व्यतीत करना स्वीकार की लेकिन अधिनता स्वीकार नहीं की। इतना कहना की उनकी महानता का परिचायक है कि महलों की विलासिता और आराम को छोडकर घास की रोटी खाना स्वीकार किया लेकिन अधिनता स्वीकार नहीं की। इसी प्रतिरोध की बजह से हल्दिघाटी का युद्ध अवश्यमभावी हो गया। आइए जानते हैं हल्दिघाटी के युद्ध को विस्तार में।
घास वाली रोटियों को खा के स्वाभिमान रखा,जैसे तैसे काटी उम्र धन्य हो गयी|
परतंत्रता की बेड़ियों को शौर्य से नकार, रण_बाकुरों की परिपाटी धन्य हो गयी|
|
उस राजपूत ने रचा जो इतिहास श्रेष्ट, राम_कृष्ण_नानक की माटी धन्य हो गयी|
चेतक की टाप पड़ते ही युद्ध भूमि पर,पावन पुनीत हल्दीघाटी धन्य हो गयी
18 जुन 1576हल्दीघाटी की लड़ाई:
Heading Title
हल्दिघाटी का युद्ध इतिहास में एक महत्वपूर्ण और वीरता का परिचायक युद्ध है यह युद्धवर्तमान राजस्थान के राजसमंद जिले के हल्दिघाटी स्थान 18 जून 1576 को हुआ था। इस युद्ध में अकबर की ओर से सेनापति आमेर का राजा मानसिंह प्रथम और मुगल सेना तथा मेवाड की ओर से महाराणा प्रताप और उनके सेनापति और भील समुदाय था। इस युद्ध के होने के पीछे कारण यह था कि मुगल शासक अकबर मेवाड से होते हुए गुजरात तक एक ऐसा मार्ग बनाने की ओर आमदा था जो कि पूरा मुगल प्रभुत्व में लेकिन मेवाड अकबर को एक बाधा के रूप में लग रहा था अत हल्दि घाटी का युद्ध अब प्रासंगिक हो गया था क्योंकि महाराणा प्रताप और अधिनता कभी हो ही नहीं सकता।
इस युद्ध सेना के आंकडे अलग-अलग स्त्रोतों से अलग-अलग प्राप्त होते हैं लेकिन सभी स्त्रोंतो को देखा जाए तो सेना एक अनुपात चार के हिसाब से थी इसका अर्थ कि महाराणा प्रताप की सेना में यदि एक सैनिक था तो उससे लडने के लिए मुगल सेना में चार सैनिक थे। यह भीषण गर्मी के दिन थे बदायूनी लिखते हैं कि देह जला देने वाली धूप और लू सैनिकों के मगज पिघला देने वाली थी।णदोनो सेनाएं हल्दिघाटी स्थान पर आमने सामने आ गई। हालांकि युद्ध कम ही समय चला लेकिन यह अत्यधिक भीषण युद्ध था इस युद्ध के बारे में इतिहासकार बदांयुनी लिखते हैं कि महाराणा प्रताप ने अपने एक ही वार से मुगल सेनापति बहलोल खान के घोडे समेत दो हिस्से कर दिये थे, यहां यह भी बताना जरूरी है कि बहलोल खान ने अपने जीवन में कोई युद्ध नहीं हारा था, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि महाराणा प्रतात कितने बलशाली थे।इतिहासकार अब्दुल फजल लिखते है कि इस युद्ध में जान सस्ती थी और इज्जत मंहगी थी। इस युद्ध की हार जीत की भूमिका पर हमेशा सवाल खडे किये जाते हैं लेकिन मेरा मानना है कि युद्ध की हार तब होती है जब-
कोई एक पक्ष का राजा मारा गया हो।
उसने आत्मसमर्पण कर दिया हो।
लेकिन इस युद्ध में ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला इस युद्ध में न हो महाराणा प्रताप की हार हुई और न मुगलों की जीत हुई महाराणा प्रताप इस युद्ध में घायल हो गए उनका घोडा चेतक घायल होने के बाद भी युद्ध स्थल से बचा लाया।
बाद में भी महाराणा प्रताप मेवाड के लिए हमेशा संघर्षरत रहें और कभी मुगलों के सामने अपना सिर नहीं झुकाया मायरा की गुफा में महाराणा प्रताप ने कई दिनों तक घास की रोटियां खा कर वक्त गुजारा था महाराणा प्रताप की मृत्यु 29 जनवरी 1597 को हुई थी। शिकार करते समय वह दुर्घटनाग्रस्त हो गए थे। अकबर ने कहा था कि यदि महाराणा प्रताप यदि उसके साथ हो जाए तो उसे दुनियां का सबसे शक्तिशाली राजा बनने से कोई नहीं रोक सकता। जब अकबर ने महाराणा प्रताप की मृत्यु का समाचार सुना तो वह रोने लगा।
महाराणा प्रताप के जीवन से प्रेरित होकर युवाओं के लिए 5 महत्वपूर्ण आदर्श
अद्वितीय इच्छाशक्ति:
महाराणा प्रताप के चरित्र में एक अद्वितीय इच्छाशक्ति निहित थी। सेना कम थी, साधन कम थे लेकिन इच्छाशक्ति वह अपार थी वे अपने आदर्शों पर दृढ संकल्पित थे तथा उन्होंने उन्हीं आदर्शों को जिया आज हम देखते हैं कि युवाओं के पास साधन तो पर्याप्त है लेकिन कमी है तो इच्छाशक्ति की। हमें महाराणा प्रताप के इच्छाशक्ति जैसे महान गुण को अपने जीवन में आत्मसात करना चाहिए तथा मजबूत इच्छाशक्ति के साथ किसी कृत्य को करना चाहिए चाहे वह पढाई हो या किसी भी प्रकार का काम हम निश्चित ही सफलता प्राप्त करेंगे।
सकारात्मक सोचAnimateBeautyEffects
कहते हैं नकारात्मकता मानव जीवन को अंधकार की ओर ले जाती है महाराणा प्रताप के जीवन पर यदि दृष्टि डाले तो उनका सारा जीवन हमें सकारात्मकता से पूर्ण लगता है उनकी सकारात्मकता के कारण ही वे मुगल जिनका उस समय सारा हिन्दुस्तान था उनसे लोहा लेने से भी नहीं डरे। जरा सोच कर देखिए यदि महाराणा प्रताप के मन में उस समय जरा सी भी नकारात्मकता घर कर जाती तो क्या हम आज उनकी बात यहां कर रहे होते। इसलिए वर्तमान में भी युवाओं को अपने जीवन के प्रत्येक क्षण में सकारात्मकता से पूर्ण होना चाहिए।
मातृभूमि से प्रेम
अपनी मातृभूमि से प्रेम करना यदि किसी से सीखा जा सकता है तो वह है महाराणा प्रताप।वह चाहते तो अधिनता स्वीकार करके महलों का आराम और विलासिता का जीवन जी सकते थे लेकिन महाराणा प्रताप ने कभी अपनी मातृभूमि के साथ समझौता नहीं किया संघर्ष चुना लेकिन अधिनता नहीं। ऐसे ही आज हम जात-पात, धर्म, राजनीति आदि के नाम पर देश को खण्डित करने पर तुले हैं। हमें महाराणा प्रताप से सीखना चाहिए कि मातृभूमि अर्थात हमारा प्यारा भारत देश सर्वोपरि है इसके बाद सब।
विपरीत परिस्थितियों में भी अडिग रहना
महाराणा प्रताप ने अपने जीवन में उन सभी परिस्थितियों का सामना किया जिनके बारे में आप कभी कल्पना भी नहीं करते होंगे। हल्दिघाटी के युद्ध के बाद उन्होंने अपना अधिकांश जीवन पहाडों में व्यतीत किया घास की रोटियां खाई लेकिन अपने आदर्शों को नहीं छोडा आज हम जरा सी तकलीफ में नकारात्मकता से घिर जाते हैं और ऐसा सोचते हैं कि सबकुछ नष्ट हो गया है। हमें महाराणा प्रतात से सीखना चाहिए कि विपरीत परिस्थितियों में अडिग कैसे रहा जाता है
संघर्षशीलता AnimateBeautyEffects
राजस्थान के कई राजपूत शासक जब मुगलों की अधिनता स्वीकार करके जब मुगलों के आगे नतमस्तक हो गए उसी समय महाराणा प्रताप जैसे सिसोदिया राजपूत ने अपने वंश को कायम रखने के लिए अकबर के सामने आत्मसमर्पण नहीं किया। जंगल–जंगल भटकते हुए तृण–मूल व घास–पात की रोटियों में गुजर–बसर कर पत्नी व बच्चे को विकराल परिस्थितियों में अपने साथ रखते हुए भी उन्होंने कभी धैर्य नहीं खोया। हम महाराणा प्रताप से संघर्षशीलता जैसे विशिष्ट गुण को सीख सकते है।
चेतक से क्या सीखा जा सकता है-
महाराणा प्रताप का घोडा अपनी वीरता के लिए विख्यात था और वह अत्यधिक शक्तिशाली और निडर था हम महाराणा प्रताप के घोडे से वफादारी के गुण को सीख सकते है। उसकी प्रसिद्धि का कारण भी वफादारी ही थी तभी हम आज उसे याद करते हैं। हल्दिघाटी में आज भी चेतक का मंदिर है।
समाप्ति
महाराणा प्रताप के जीवन का वृतांत कितना भी किया जाए कम ही होगा महाराणा प्रताप ने एक आदर्शपूर्ण जीवन जिया और हमें सिखाया कि अगर आपके लक्ष्य और इच्छाशक्ति एकदम अडिग है तो कोई भी मुश्किल आपका रास्ता नहीं रोक सकती। महाराणा प्रताप ने विपरीत परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी। यह आज के युवाओं के लिए एक महत्वपूर्ण सबक है कि कठिन समय में संयम और इच्छाशक्ति के साथ कामयाबी हासिल की जा सकती है। उनकी संपूर्ण जीवन को हमें प्रेरणा के रूप में अपनाकर मेहनत और संघर्ष के साथ आगे बढकर आगे बढना चाहिए निश्चित ही सफलता हमारी होगी और इसी सफलता के साथ हम देश और समाज के कल्याण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
धन्यवाद,